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विरह कभी किसी चीज़ के लिए नहीं तरसे थे, पर जाने क

विरह

कभी किसी चीज़ के लिए नहीं तरसे थे,
पर जाने क्यूँ तुझ से बात करने को तरसते हैं।

जब बैठते हैं कही अकेले में तेरे ख़यालों को समेटे ,
मेरी आँखों से आँसू बरसते हैं।

पता है तेरे पास वक्त नहीं होता मेरे लिये,
फिरता हूँ तेरी यादों को दोपहर,शाम,रात,सुवहरे लिये।

कभी-कभी किसी बहाने से ही बात कर लिया कर,
रखने दिल मेरा, फोन पर सिर्फ़ मुझे ही सुन लिया कर।

होगी तसल्ली चाहे झूठी ही सही ,
मेरी यादों को अपने ख़्यालों में ही बुन लिया कर।

तुझे नहीं पता तुझसे मिलने बाद ,
ये मेरे नयन गर्व से ना जाने कितना गरजते हैं।

कभी किसी चीज़ के लिए नहीं तरसे थे,
पर जाने क्यूँ तुझ से बात करने को तरसते हैं।

©Ravindra Singh विरह....

विरह....

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