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दिल-ए-किश्ती के साहिल गए जीस्त में जो थे शामिल

दिल-ए-किश्ती के साहिल गए
जीस्त  में  जो  थे शामिल गए

कस्में   वादे   वो   बातें   सभी
तोड़   कर   मेरे   कातिल  गए

बिखरे  ख्वाबो  के  सारे महल
लौट कर जब  वो  बे दिल गए

सोचता   हूँ   किसे   अब  कहूँ
फड़फड़ाकर ये लब सिल गए

बोझ  सर   पर  बना   ही  रहा
जिस्म  ओ जां  सभी हिल गए

साये  हैं  खुशबू  के  हर  जगह
लग  रहा  यादे  गुल  खिल गए
     ( लक्ष्मण दावानी ✍ )

©laxman dawani
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