#प्रकृति_और_मैं...🙂 अपने रोज की दिनचर्या एवं अध्ययन से परिपूर्ण होकर इस समय जो भी थोड़ा बहुत समय मुझे मिलता है, ऐसे में मैं किसी बिल्कुल शांत जगह पर एकांतिक मुद्रा में बैठकर बड़ी देर तक प्रकृति को ही बस निहारता रहता हूँ। न जाने क्यूँ? इससे बहुत ही सुकून की अनुभूति होती है मुझे। और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए खुद-ब-खुद अपने आध्यात्मिक दुनिया में विचरण करने लगता हूँ, जो कि मेरी खुशी को दो-गुना कर देता है।😊👍👍 आज ऐसे ही बैठकर प्रकृति को देर तक निहारते हुए यही सोच रहा था कि, निःस्वार्थ प्रेम को परिभाषित और सार्थक किया है प्रकृति ने। नदी, पहाड़, पेड़, सूरज, चंदा, तारें, आकाश, बादल सब प्रेम करना जानते हैं हमसे और निभाना भी।👍👍 देखो!...जब सूरज की तपिश जलाकर सागर के नीर को भाप बना उड़ा देती है गगन की ओर, बादल कैसे समेट लेते हैं उसे अपने अंदर। बरसा देते हैं उस स्थान पर जहां कोई बीज अपनी आंखों में प्रतीक्षा लिए ताक रहा है उसकी ओर। पानी की एक बूंद पड़ते ही, अपने अस्तित्व को आकार देने के लिए तैयार नव-अंकुरित पौधा, अपने फूलों की खुशबू में चारों दिशाओं को महका देता है बिना किसी स्वार्थ के। अनगिनत फूल, फल, सब्जियों से भर देता है सबका दामन।😊👍👍 शायद! तुमने ध्यान ना दिया हो... जानते हो जहां प्रकृति मनुष्य विहीन है वहाँ बहुत खूबसूरत है। हम दोषी हैं उसे दूषित करने के लिए। हमें प्रेम करना आया ही नही, अगर है भी तो स्वार्थ छुपा हुआ है हमारे प्रेम में। पर यकीन मानो! प्रकृति प्रेम करना जानती है, तुमसे और मुझसे कहीं ज्यादा। तभी तो मुझे पसंद है इसके इतना समीप रहना।☺👍 -✍️ अभिषेक यादव nature