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किनारे जब घुल-घुलकर लहरों से मिलते है तब लहरों को

किनारे जब घुल-घुलकर लहरों से मिलते है
तब लहरों को सौ बार उछलते देखा है
मैने कोमल गुलाब की पंखुडियों को चुमकर
शबनम की बूँदों को संभलते देखा है...


( शेष कविता अनुशीर्षक में...) सौंदर्य में सीमटा प्रेम है या प्रेम ही सौंदर्य है
ये प्रश्न हर बार मन में कौंध जाते है
महँक उठता है दिल का हर कोना-कोना
जब स्वयं को हम प्रकृति के समीप पाते है

मैने देखा है बहारों के अंजुमन में ठहरकर
अल्हड़ से भौरों को फूलों में छुपते हुए
नन्हीं-नन्हीं कलियों को बसंत में खिलने पर
किनारे जब घुल-घुलकर लहरों से मिलते है
तब लहरों को सौ बार उछलते देखा है
मैने कोमल गुलाब की पंखुडियों को चुमकर
शबनम की बूँदों को संभलते देखा है...


( शेष कविता अनुशीर्षक में...) सौंदर्य में सीमटा प्रेम है या प्रेम ही सौंदर्य है
ये प्रश्न हर बार मन में कौंध जाते है
महँक उठता है दिल का हर कोना-कोना
जब स्वयं को हम प्रकृति के समीप पाते है

मैने देखा है बहारों के अंजुमन में ठहरकर
अल्हड़ से भौरों को फूलों में छुपते हुए
नन्हीं-नन्हीं कलियों को बसंत में खिलने पर

सौंदर्य में सीमटा प्रेम है या प्रेम ही सौंदर्य है ये प्रश्न हर बार मन में कौंध जाते है महँक उठता है दिल का हर कोना-कोना जब स्वयं को हम प्रकृति के समीप पाते है मैने देखा है बहारों के अंजुमन में ठहरकर अल्हड़ से भौरों को फूलों में छुपते हुए नन्हीं-नन्हीं कलियों को बसंत में खिलने पर #एक #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqlove #yqpoetry #printrest #yqrestzone