कभी खुद से मिलकर रोये हो ? कभी अपनी गलतियों पर खुद से नजर न मिला सको तब ठीक से सोये हो ? कभी यूँ ही वेवजह किसी की खातिर रात भर जाग कर सपने संजोए हो? कभी मंदिर में बैठकर किसी अंजान कि खातिर भजन में खोए हो ? कभी अपने अच्छे कर्मों से कुछ जख्म खुद के धोए हो ? कभी टूटे हुए कतार से नीचे लोगों को खुद में पिरोए हो? जो गिर रहे थे दबाए हुए लोग उनका हाथ थामकर उनकी तकलीफों को डुबोये हो? कभी दूसरों की खुशी की खातिर खुद को खंजर चुभोए हो ? अगर हाँ तो इंसान हो तुम । और दुआ है कि तुममें ये असर जिंदा रहे। #माधवेन्द्र_फैज़ाबादी