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जीवन का ये खेल है सब ,कोई पाता है कोई खोता है।जीवन

जीवन का ये खेल है सब ,कोई पाता है कोई खोता है।जीवन पथ पर चलते चलते,कोई रोता है,कोई हँसता है। कब कौन कहां मिलता पथ पर,चल आगे कौन बिछड़ता है। है कौन सदा रहता संग में, एक दिन वो छोड़ निकलता है। ये माया भी ऐसी ही है, जो सब को नाच नचाती है। कभी इधर तो कभी उधर, कहां कहां भटकाती है। उलझ उलझ के इस माया में,मानव चैन गंवाता है।

©नागेंद्र किशोर सिंह #जीवन चक्र
जीवन का ये खेल है सब ,कोई पाता है कोई खोता है।जीवन पथ पर चलते चलते,कोई रोता है,कोई हँसता है। कब कौन कहां मिलता पथ पर,चल आगे कौन बिछड़ता है। है कौन सदा रहता संग में, एक दिन वो छोड़ निकलता है। ये माया भी ऐसी ही है, जो सब को नाच नचाती है। कभी इधर तो कभी उधर, कहां कहां भटकाती है। उलझ उलझ के इस माया में,मानव चैन गंवाता है।

©नागेंद्र किशोर सिंह #जीवन चक्र