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मृगतृष्णा की चाहत में,छाया के पीछे जाते हो। सुख,चै

मृगतृष्णा की चाहत में,छाया के पीछे जाते हो।
सुख,चैन, सकून, सब छूट गया,अब क्यों घबराते हो।।
माया हरदम ठगती है,जीवन नश्वर भी सबने पाया है।
सब छोड़ यहीं जब जाना है,फिर क्यों इतना इतराते हो।।

©Shubham Bhardwaj
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