"संगदिल" चाहता नहीं हुँ खोना , मगर तुम्हें ही मुझे पाना नहीं है, तुम रूठे हो मुझसे , मगर मुझे अब तुम्हें मनाना नहीं है! बड़ी गफलत है एक-दूजे को लेकर बीच हमारे, मैंने जाना नहीं तुम्हें, और तुमने मुझे पहचाना नहीं है! यूँ तो लिख रखें है मैंने याद में तुम्हारी, प्रेम-गीत कई , मगर तुम्हारे अलावा इन्हें अब किसी को सुनना भी नहीं है! पेशकश अब तक मैने ही की तुमसे मुलाकात की, ये जानते हुए भी के तुम्हें मिलने आना ही नहीं है! ऐसा नहीं है के मुझे मिलेगा नहीं कोई बाद तुम्हारे , मगर मुझे ही अब किसी को अपनाना नहीं है! नफरत सी हो गई है इश्क के नाम से बाद तुम्हारे , अब किसी और से मुझे , दिल लगाना ही नहीं है! जब दिल करे तुम्हारा तो चले आना , प्यार जो किया है तुमसे वो कोई बहाना नहीं है! मैंने प्यार तुम्हारे जिस्म से नहीं रूह से किया है, ढूंढ सको तो ढूंढ लेना, मगर मुझसा दुनिया मे कोई तुम्हारा दीवाना नहीं है! तुम्हें नाराज़गी है मेरी एक बात से , मगर सच तो ये है, सिर्फ कहा है तुम्हें "संगदिल", मगर कभी "माना" नहीं है! ©"Author Shami" ✍️ (Satish Girotiya) #Poem: #संगदिल ☺️✍️