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White उन कांच के पन्नों का ज़िक्र, आज भी करती है

White  उन कांच के पन्नों का ज़िक्र,
आज भी करती है जिंदगी।
जो टूट कर बिखरे,
और लव्जो का शोर भी ना हुआ।
समेटते वक्त याद है मुझे,
लहू की बूंद गिरी तो थी।
पर शायद वो उसी मे समा गई,
और गुमनाम सी ये जिंदगी,
सुबकना भी भूल गई।
आज भी वो जिक्र, बस जिक्र ही रह गया,
और जिंदगी फिर खामोश रह गई।

©PRIYANSHI MITTAL
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