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उठाये सर वहाँ पर घास के तिनके खड़े होंगे न जाने ह

उठाये सर वहाँ पर घास के तिनके खड़े होंगे 
न जाने हिज़्र में मर कर जहाँ कितने गड़े होंगे।
 
कि पतझड़ में जहाँ पर फूल खिलते थे वहीं पर अब
बहारों में अभी उस शाख से पत्ते झड़े होंगे। 

अलग होते हुए जब एक बोसा था दिया तुमने 
वहाँ पत्थर के बुत भी आँख भर कर रो पड़े होंगे। 

तभी ही ज्ञान का रस्ता बताया था तथागत ने
यहाँ तो इश्क़ की राहों में पड़ कितने मरे होंगे। 

सुखी होंगे मुसलमां और हिन्दू एक दुनिया में 
मसाजिद और मन्दिर में जहाँ ताले जड़े होंगे। उठाये सर वहाँ पर घास के तिनके खड़े होंगे 
न जाने हिज़्र में मर कर जहाँ कितने गड़े होंगे।
 
कि पतझड़ में जहाँ पर फूल खिलते थे वहीं पर अब
बहारों में अभी उस शाख से पत्ते झड़े होंगे। 

अलग होते हुए जब एक बोसा था दिया तुमने 
वहाँ पत्थर के बुत भी आँख भर कर रो पड़े होंगे।
उठाये सर वहाँ पर घास के तिनके खड़े होंगे 
न जाने हिज़्र में मर कर जहाँ कितने गड़े होंगे।
 
कि पतझड़ में जहाँ पर फूल खिलते थे वहीं पर अब
बहारों में अभी उस शाख से पत्ते झड़े होंगे। 

अलग होते हुए जब एक बोसा था दिया तुमने 
वहाँ पत्थर के बुत भी आँख भर कर रो पड़े होंगे। 

तभी ही ज्ञान का रस्ता बताया था तथागत ने
यहाँ तो इश्क़ की राहों में पड़ कितने मरे होंगे। 

सुखी होंगे मुसलमां और हिन्दू एक दुनिया में 
मसाजिद और मन्दिर में जहाँ ताले जड़े होंगे। उठाये सर वहाँ पर घास के तिनके खड़े होंगे 
न जाने हिज़्र में मर कर जहाँ कितने गड़े होंगे।
 
कि पतझड़ में जहाँ पर फूल खिलते थे वहीं पर अब
बहारों में अभी उस शाख से पत्ते झड़े होंगे। 

अलग होते हुए जब एक बोसा था दिया तुमने 
वहाँ पत्थर के बुत भी आँख भर कर रो पड़े होंगे।

उठाये सर वहाँ पर घास के तिनके खड़े होंगे न जाने हिज़्र में मर कर जहाँ कितने गड़े होंगे। कि पतझड़ में जहाँ पर फूल खिलते थे वहीं पर अब बहारों में अभी उस शाख से पत्ते झड़े होंगे। अलग होते हुए जब एक बोसा था दिया तुमने वहाँ पत्थर के बुत भी आँख भर कर रो पड़े होंगे। #शायरी