))))) धर्म परेशान है ((((( """""""""""""""""""""""" धर्म परेशान है अधर्म से , इंसानों के बिगड़े कर्म से। आग लगी है धरती पर , आत्मा रो रही है अर्थी पर। हवा भी खून से लथपथ है,धर्म का अब यही अग्नीपथ है। अब तलवार धर्म बदलता है , निर्मल मन दहलता है। चित्कार गूंज रहा है अंबर में , चीख रहा है अंतर्मन। कट रहा है सुसज्जित मानव तन,टूट रहा है देवत्व बंधन। मुस्कुरा रहा है ध्वंसक मन , आंसू बहा रहा है सनातन। हम वीर थे , वीर हैं , वीर रहेंगे , वतन के तकदीर थे, तकदीर रहेंगे। आ लौट आ तू सनातन मार्ग पर,तुम्हारे सांसों की माला है, परिष्कार और पात्र पर। पैरों में घुंघरू नहीं अब थामले हाथों में भोले का डमरु। रतिचर हो रहा है रूबरू। कुटास - कूटनीति और अस्त्र से, मरीचा डाल लड़ो अधर्म से। तलवार, ढाल ले लड़ छलछंद से, रणवीर बन गीता - रामायण और सनातन धर्म से। धर्म परेशान है अधर्म से, इंसानों के बिगड़े कर्म से।। """"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""" प्रमोद मालाकार की कलम से 27.07.2016 """""""""""""" ©pramod malakar #धर्म परेशान है।