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इक रोज किनारे पर मिलना फिर सारे वादे तोड़ेंगे बस र

इक रोज किनारे पर मिलना फिर 
सारे वादे तोड़ेंगे
बस रस्म रहेगी साथ चलें
फिर दरिया बीच बना लेंगे
उस पार से तुम इस पार से मैं
फिर से हम हो जाएंगे
बस साथ चलेंगे रस्म रहेगी
ख्वाब सभी मर जायेंगे।

दुनिया दस्तूर भी हैं
लोगों का कहना काम भी है
दुनियादारी के झमेले हो
भी हम वैसे निभाएंगे
एक दायरा होना चाहिए
बतौर दरिया हमारे बीच
हम सवालों के जबाब में वो बनाएंगे
बस ख्वाब सभी मर जायेंगे।

#माधवेन्द्र_फैजाबादी— % &
इक रोज किनारे पर मिलना फिर 
सारे वादे तोड़ेंगे
बस रस्म रहेगी साथ चलें
फिर दरिया बीच बना लेंगे
उस पार से तुम इस पार से मैं
फिर से हम हो जाएंगे
बस साथ चलेंगे रस्म रहेगी
ख्वाब सभी मर जायेंगे।

दुनिया दस्तूर भी हैं
लोगों का कहना काम भी है
दुनियादारी के झमेले हो
भी हम वैसे निभाएंगे
एक दायरा होना चाहिए
बतौर दरिया हमारे बीच
हम सवालों के जबाब में वो बनाएंगे
बस ख्वाब सभी मर जायेंगे।

#माधवेन्द्र_फैजाबादी— % &