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उदास रातें,,उदास मौसम रूला रहे थे ,,तो तुम कहां थे

उदास रातें,,उदास मौसम रूला रहे थे ,,तो तुम कहां थे ,,
हमारे जख्मों को ,,हम ही ,,मरहम लगा रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
#
बिछड़ रहे हमसे जब तुम यूं,,सुनो ये बिनाइ घट रही थी ,,
हम एक मुद्दत से ख़ाक ए सेहरा उड़ा रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
#
मैं वो पुरानी सी एक कुर्सी जो घर के कोने में रखी हुई है ,,
और उसको गम के तमाम दिमग जो खा रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
#
झुका के पलके अब आ रहे हो ,,जब खाक होकर बिखर गया हूं,,
गले दीवारों को रोते रोते लगा रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
#
हर एक करता ही ले रहा था ये नाम तेरा उदास शब में ,,
हमारे आंसू ये  हाल दिल का सुना रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
#
हमे बुलाने अब आ रहे ,,जब कूह ए सेहरा के हो गए हम ,,
वो सर्द रातें जुदाई के गम सता रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
#
बिछड़ रहे हो तो जिस्म से तुम निकाल फेंको ये रूह मेरी ,,
तमाम रातें ही जागकर यूं बुला रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
#
तुम्हारी यादों का सारा दरिया ,,ये सारी कश्ती ये सारे मोसम,,
उबलते अश्कों से सारा दुख जो बता रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
#
हमे खीजा रास आ गई है ,,तो अब बहारों का क्या करेंगे ,,
अपनी तन्हाई दूर करने ,जब बुला रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
#
तमाम शब इंतजार करना ,,फलक के तारे शुमार करना ,,
गम ए जुदाई में जशन ए फुरकत माना रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
#
बताओ अर्पित पुरानी बातो को याद करके कैसा रोना ,,
तमाम उम्र ही याद तुम मुझको आ रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
#
(अर्पित शर्मा)

©Dr. of thuganomics #तो तुम कहां थे #अर्पित शर्मा
उदास रातें,,उदास मौसम रूला रहे थे ,,तो तुम कहां थे ,,
हमारे जख्मों को ,,हम ही ,,मरहम लगा रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
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बिछड़ रहे हमसे जब तुम यूं,,सुनो ये बिनाइ घट रही थी ,,
हम एक मुद्दत से ख़ाक ए सेहरा उड़ा रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
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मैं वो पुरानी सी एक कुर्सी जो घर के कोने में रखी हुई है ,,
और उसको गम के तमाम दिमग जो खा रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
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झुका के पलके अब आ रहे हो ,,जब खाक होकर बिखर गया हूं,,
गले दीवारों को रोते रोते लगा रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
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हर एक करता ही ले रहा था ये नाम तेरा उदास शब में ,,
हमारे आंसू ये  हाल दिल का सुना रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
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हमे बुलाने अब आ रहे ,,जब कूह ए सेहरा के हो गए हम ,,
वो सर्द रातें जुदाई के गम सता रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
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बिछड़ रहे हो तो जिस्म से तुम निकाल फेंको ये रूह मेरी ,,
तमाम रातें ही जागकर यूं बुला रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
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तुम्हारी यादों का सारा दरिया ,,ये सारी कश्ती ये सारे मोसम,,
उबलते अश्कों से सारा दुख जो बता रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
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हमे खीजा रास आ गई है ,,तो अब बहारों का क्या करेंगे ,,
अपनी तन्हाई दूर करने ,जब बुला रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
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तमाम शब इंतजार करना ,,फलक के तारे शुमार करना ,,
गम ए जुदाई में जशन ए फुरकत माना रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
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बताओ अर्पित पुरानी बातो को याद करके कैसा रोना ,,
तमाम उम्र ही याद तुम मुझको आ रहे थे ,,तो तुम कहां थे ।।
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(अर्पित शर्मा)

©Dr. of thuganomics #तो तुम कहां थे #अर्पित शर्मा

तो तुम कहां थे अर्पित शर्मा