गुरुजी ने विस्तार से दर्शन के बारे में समझाया। दर्शन मन में पैदा होता है और जो चीज़ मन से पैदा होती ही, वही तो प्रेम है। मन हमारी आत्मा का कर्मस्थल है और इसीलिए पवित्रतम है। जबकि प्रदर्शन बाह्य है जिसका हमारे आंतरिक मन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
दिखावटी प्रेम,प्रेम नही है। वो शायद उम्मीदों और वासना से पैदा होता है, हमें इससे बचना चाहिए।
इस उत्तर से संतुष्ट होकर वह गुरुजी को धन्यवाद देकर वापस घर आ गया।
"प्रेम दर्शन है प्रदर्शन नहीं" वाली phiolosophy ने उसका प्रेम पर पूर्ण नज़रिया ही बदल दिया।
~ गणेश पांडेय
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