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कहाँ शाम ढली, कहाँ रात जल रही अरमान बहुत,दिल के टु

कहाँ शाम ढली, कहाँ रात जल रही
अरमान बहुत,दिल के टुकड़ों में मचल रही
कहाँ बेवफ़ाई को सर का ताज बनाते लोग
और कहाँ वफ़ा की हक़ीक़तें रह गई अनकहीं
हमने माना कि बुरे हैं हम, तुम्हे तसल्ली हो
कभी किसी मोड़ पे मिलना हुआ तो रहेंगे अजनबी

©paras Dlonelystar
  कहाँ शाम ढली, कहाँ रात जल रही
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