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रफ़ीक़-ए-दिल भी और दुश्मन-ए-जाँ भी, मोहब्बत भी क्या

रफ़ीक़-ए-दिल भी और दुश्मन-ए-जाँ भी,
मोहब्बत भी क्या खूब शग़्ल होती है ! - 1

फूलों से दिल लगाया, दिल चाक कर गए !
काँटों से दिल लगाया तो ज़ख़्म भर गए ! - 2

एक राज़ कहते-कहते मैं रुक जाता था अक्सर,
लेकिन ग़ज़ल में ज़ाहिर हर राज़ हो गया ! - 3

यूँ भी हुआ कि एक रात हम सौदाई हो गए,
ख़ुद को ही ख़ुद हँसाया और हंसा करके रो लिए ! - 4

वो भंवर था हमने जिसको साहिल समझा,
अब तो जाँ पे बन आया है वफ़ाओं का सफ़र ! - 5

मुझे सुलझाने की ज़िद में, उलझ तू जाएगा ख़ुद ही,
कभी ज़िद्दी, कभी जंगली, कभी अक़्ला मेरा मन है ! - 6

बेशक मैं तेरी सोच का हिस्सा हूँ आज भी,
अफ़सोस कि तेरे जिस्म का साया मैं नहीं हूँ ! - 7

पानी में अक्स देखते हैं, लहरों को ख़ता देते हैं,
ग़ैरों की ग़ल्तियों की अपनों को सज़ा देते हैं ! - 8

मज़ा इसमें भी है कि उनको जलाया जाए,
कि जिनसे रूठने में भी मज़ा, जिनको मनाने में भी ! - 9

कब तलक जलता रहूँ मुसलसल मैं तपिश में,
उरूज न सही, मेरा ज़वाल बनके चले आओ ! - 10


©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर ,प्रोपर औरंगाबाद,बिहार
स0स0-9231/2017 रफ़ीक़-ए-दिल भी और दुश्मन-ए-जाँ भी,
मोहब्बत भी क्या खूब शग़्ल होती है ! - 1

फूलों से दिल लगाया, दिल चाक कर गए !
काँटों से दिल लगाया तो ज़ख़्म भर गए ! - 2

एक राज़ कहते-कहते मैं रुक जाता था अक्सर,
लेकिन ग़ज़ल में ज़ाहिर हर राज़ हो गया ! - 3
रफ़ीक़-ए-दिल भी और दुश्मन-ए-जाँ भी,
मोहब्बत भी क्या खूब शग़्ल होती है ! - 1

फूलों से दिल लगाया, दिल चाक कर गए !
काँटों से दिल लगाया तो ज़ख़्म भर गए ! - 2

एक राज़ कहते-कहते मैं रुक जाता था अक्सर,
लेकिन ग़ज़ल में ज़ाहिर हर राज़ हो गया ! - 3

यूँ भी हुआ कि एक रात हम सौदाई हो गए,
ख़ुद को ही ख़ुद हँसाया और हंसा करके रो लिए ! - 4

वो भंवर था हमने जिसको साहिल समझा,
अब तो जाँ पे बन आया है वफ़ाओं का सफ़र ! - 5

मुझे सुलझाने की ज़िद में, उलझ तू जाएगा ख़ुद ही,
कभी ज़िद्दी, कभी जंगली, कभी अक़्ला मेरा मन है ! - 6

बेशक मैं तेरी सोच का हिस्सा हूँ आज भी,
अफ़सोस कि तेरे जिस्म का साया मैं नहीं हूँ ! - 7

पानी में अक्स देखते हैं, लहरों को ख़ता देते हैं,
ग़ैरों की ग़ल्तियों की अपनों को सज़ा देते हैं ! - 8

मज़ा इसमें भी है कि उनको जलाया जाए,
कि जिनसे रूठने में भी मज़ा, जिनको मनाने में भी ! - 9

कब तलक जलता रहूँ मुसलसल मैं तपिश में,
उरूज न सही, मेरा ज़वाल बनके चले आओ ! - 10


©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर ,प्रोपर औरंगाबाद,बिहार
स0स0-9231/2017 रफ़ीक़-ए-दिल भी और दुश्मन-ए-जाँ भी,
मोहब्बत भी क्या खूब शग़्ल होती है ! - 1

फूलों से दिल लगाया, दिल चाक कर गए !
काँटों से दिल लगाया तो ज़ख़्म भर गए ! - 2

एक राज़ कहते-कहते मैं रुक जाता था अक्सर,
लेकिन ग़ज़ल में ज़ाहिर हर राज़ हो गया ! - 3