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सोचती हूँ जिंदगी को फिर से पढूँ, पढ़ लिख कर नये ज़मा

सोचती हूँ जिंदगी को फिर से पढूँ,
पढ़ लिख कर नये ज़माने संग चलूँ,
शायद... ना दौड़ पाऊँ तेज क़दमों से,
पर संग उनके कुछ रास्ता तो तय कर सकूँ,
फिर कहीं हो जाये दोस्ती थोड़ी-थोड़ी
फिर अकेला ना पाऊँ खुद को मैं...
उनके बीच खड़ी
हाँ, कोशिश करनी ही होगी
कुछ तो फांसले की दूरी
 तय करनी होगी

©Rajni Sardana
  #Sawera#नईसोच
#नया_ज़माना #साथ_साथ