भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा हे जगदीश्वर जगन्नाथ, हे जगत नियंता त्रिपुरारी जीवन नैया डोल रही है, हे करुणाकर करना रखवारी माया मोह देह लिप्त, जीव भटकता अविनाशी हे सत चित आनंद स्वरूप, जीवन की हरो उदासी त्रय तापों से मुक्त करो, ज्ञान की औषध दो बनवारी स्वस्थ करो तन मन प्रभु , जीवन यात्रा सुखद हमारी पंच भूत का रथ शरीर है, आत्मा रथी है मेरी मायाअश्वों सेजीवन संचालित,ज्ञान से करो मुक्ति प्रभु मेरी मैं हूं माटी की देह , माया से आवध्द सदा मैं हूंअविवेकी जीव, आवरण भेद से ढका सदा संसार सागर में नैया, मेरी हिचकोले खाती है हर कष्ट और मुसीबत में, याद तुम्हारी आती है हे जगन्नाथ सबके स्वामी, सत चित आनंद बना जाओ नश्वर संसार पर कृपा करो, जीवन मार्ग बता जाओ पंचभूत के रथ और रथी को, संसार से मुक्ति दे जाओ ©Suresh Kumar Chaturvedi # भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा