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ये शांति उस कोलाहल को दबाए है जो तू जान के अनसुना

ये शांति उस कोलाहल को दबाए है जो तू जान के अनसुना करता है।
कहता तो मन से है पर स्वार्थ की ही सुना करता है।

क्यों सुनूं मैं मन की एक भी बात जो हृदय से ना की गई हो?
स्वार्थ से सने हो शब्द , रक्त से विचारो की रचना हुई हो।

मैं अपना मस्तिस्क स्याह नहीं करना चाहता घृणा से
मैं अपनी नीचता में सुखी हूं ,भय है विरोध के परिणाम से।

चलो ये भी सही है कायरों को कायर ही मिलेगा
मन की बात तो होगी पर मन से कोई कुछ ना करेगा।

©mautila registan #nojatohindi #nojato #Hindi #hindi_poetry 

#Glow
ये शांति उस कोलाहल को दबाए है जो तू जान के अनसुना करता है।
कहता तो मन से है पर स्वार्थ की ही सुना करता है।

क्यों सुनूं मैं मन की एक भी बात जो हृदय से ना की गई हो?
स्वार्थ से सने हो शब्द , रक्त से विचारो की रचना हुई हो।

मैं अपना मस्तिस्क स्याह नहीं करना चाहता घृणा से
मैं अपनी नीचता में सुखी हूं ,भय है विरोध के परिणाम से।

चलो ये भी सही है कायरों को कायर ही मिलेगा
मन की बात तो होगी पर मन से कोई कुछ ना करेगा।

©mautila registan #nojatohindi #nojato #Hindi #hindi_poetry 

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