आज खुदसे हि अंजान बनना चाहते है,क्यूकी पहचान समजकर खुदगर्ज हो जाते है,और ये खुदगर्जीमे पराये भी अपने हो जाते है और अपने खाली आजमाते है अंजान होते है,तब अपना पराये का खयाल नही आता, और कोयी साथ हो या ना हो ये जरुरी नही होता अंजान ख्वाब देखना चाहती हूं बेजान दिल चुराना चाहती हूं नजरअंदाज नजरे मिलाने चाहती हूं बेदर्द रुह छुना चाहती हूं,देखना है हमे अंजानेपन का एहसास ,कभी जाननेवाले होते है दूर और अंजान हि होते पास पल्लवी फडणीस,भोर✍