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मंथन कौन करेगा आकर, बनना होगा स्वयं सुधाकर, क्र

मंथन कौन करेगा आकर, 
बनना होगा स्वयं सुधाकर, 

क्रोध और आक्रोश त्यागकर, 
रखना होगा हृदय विभाकर, 

अंधकार का दंभ मिटाकर, 
लगे चमकने पुन: दिवाकर, 

भटक गए कर्तव्य भूलकर, 
पछतायेंगे   आगे   जाकर, 

शातिर ठग भोली है जनता,
लाना  होगा  उन्हें  मनाकर, 

अगर चेतना जगी न अब भी, 
खो दोगे तुम सबकुछ पाकर, 

जीते-जी  की  कद्र नहीं जब, 
क्या हो मृत को सुधा पिलाकर, 

धर्म नीति पर चलना 'गुंजन',
संततियों का भाग्य जगाकर, 
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        प्रयागराज उ•प्र•

©Shashi Bhushan Mishra #बनना होगा स्वयं सुधाकर#
मंथन कौन करेगा आकर, 
बनना होगा स्वयं सुधाकर, 

क्रोध और आक्रोश त्यागकर, 
रखना होगा हृदय विभाकर, 

अंधकार का दंभ मिटाकर, 
लगे चमकने पुन: दिवाकर, 

भटक गए कर्तव्य भूलकर, 
पछतायेंगे   आगे   जाकर, 

शातिर ठग भोली है जनता,
लाना  होगा  उन्हें  मनाकर, 

अगर चेतना जगी न अब भी, 
खो दोगे तुम सबकुछ पाकर, 

जीते-जी  की  कद्र नहीं जब, 
क्या हो मृत को सुधा पिलाकर, 

धर्म नीति पर चलना 'गुंजन',
संततियों का भाग्य जगाकर, 
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        प्रयागराज उ•प्र•

©Shashi Bhushan Mishra #बनना होगा स्वयं सुधाकर#