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विधा , गीत *{सरसी छन्द}* बचपन के वह खेल पुराने ,

विधा , गीत  *{सरसी छन्द}*

बचपन के वह खेल पुराने ,आते हैं अब याद ।
नहीं काम की चिंता कोई , रहते थे आजाद ।।
बचपन के वह खेल पुराने ......,

बचपन में रिश्तों का मतलब, खाना मिलता खास ।
बब्लू डब्लू रंजन दीपू , के हम होते पास ।।
वह छुपा छुपाई खो खो के , साथी थे उस्ताद ।
सुन लेते थे बातें सबकी , मगर खेल के बाद ।।
बचपन के वह खेल पुराने , आते हैं अब याद...

सुबह शाम की होती वर्जिश , घर के करके काम ।
भूले रहते मास्टर जी के , दिए मैथ के काम ।
जाने कैसे मुर्गा बोले , कैसा मिले प्रसाद ।
फिर तो नानी मौसी भी कल ,आ जायेंगी याद ।।
बचपन के वह खेल पुराने , आते हैं जब याद .....।।

नहीं काम की चिंता कोई , रहते थे आजाद .....।।
बचपन के वह खेल पुराने आते हैं अब याद ....।।

    २६/०७/२०२२  -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चित्र चिंतन , 
विधा , गीत  *{सरसी छन्द}*

बचपन के वह खेल पुराने ,आते हैं अब याद ।
नहीं काम की चिंता कोई , रहते थे आजाद ।।
बचपन के वह खेल पुराने ......,

बचपन में रिश्तों का मतलब, खाना मिलता खास ।
विधा , गीत  *{सरसी छन्द}*

बचपन के वह खेल पुराने ,आते हैं अब याद ।
नहीं काम की चिंता कोई , रहते थे आजाद ।।
बचपन के वह खेल पुराने ......,

बचपन में रिश्तों का मतलब, खाना मिलता खास ।
बब्लू डब्लू रंजन दीपू , के हम होते पास ।।
वह छुपा छुपाई खो खो के , साथी थे उस्ताद ।
सुन लेते थे बातें सबकी , मगर खेल के बाद ।।
बचपन के वह खेल पुराने , आते हैं अब याद...

सुबह शाम की होती वर्जिश , घर के करके काम ।
भूले रहते मास्टर जी के , दिए मैथ के काम ।
जाने कैसे मुर्गा बोले , कैसा मिले प्रसाद ।
फिर तो नानी मौसी भी कल ,आ जायेंगी याद ।।
बचपन के वह खेल पुराने , आते हैं जब याद .....।।

नहीं काम की चिंता कोई , रहते थे आजाद .....।।
बचपन के वह खेल पुराने आते हैं अब याद ....।।

    २६/०७/२०२२  -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चित्र चिंतन , 
विधा , गीत  *{सरसी छन्द}*

बचपन के वह खेल पुराने ,आते हैं अब याद ।
नहीं काम की चिंता कोई , रहते थे आजाद ।।
बचपन के वह खेल पुराने ......,

बचपन में रिश्तों का मतलब, खाना मिलता खास ।