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ये खुला आसमान और महकती फिजाएं कागज और उस पर बिखरे

ये खुला आसमान और महकती फिजाएं
कागज और उस पर बिखरे रंग
धीरे धीरे कोई कविता 
किसी चित्रकारी में बदल रही हो
कुछ अपने साथ हो
खुलती बातों का पिटारा लेकर
जुगनी सी चमकती रात हो 
हाथ में मेरे कलम, कागज और
रंगो से भरी एक ब्रश हो
मैं उकेरती रहूं यादों को कागज पर
कुछ धुंधली यादों को रंगों से भर
फिर से ताजा कर दूं 
कभी कोई एक ऐसी शाम हो ।।

©Kanchan Singla
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