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तेरे शहर की शाम ए बसर मेरे कदमों के निंशा पूछती ह

तेरे शहर की शाम ए बसर 
मेरे कदमों के निंशा पूछती है।
भटकती राहे मंजिल का पता पुछती है ॥
तेरे नाम से ही जिन्दा हैं हम फिर भी
धकड़ते दिल की तड़प भी 
जीने की वजह पूछती है ॥

©Shakuntala Sharma
  #dhundh . जिन्दगी मेरी जीने की वजह पूछती है।

#dhundh . जिन्दगी मेरी जीने की वजह पूछती है। #शायरी

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