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🌹जहां धूमिल हो जाते सारे मस्तिष्क - तृष्णा के द्

🌹जहां धूमिल हो जाते सारे

मस्तिष्क - तृष्णा के द्वंद, एक असीम मौन में।

जहाँ देखते देखते क्षण भर में,
दहक उठता हैं देह अनेकों चिताओ में।

जहाँ सारे स्वांग नष्ट हो जाते हैं
भ्रम - अभिमान के, चीर अग्नि में।

जहाँ आँसू सूख कर गिर जाते हैं
अथक सुलगती राख़ में।

जहाँ सबकुछ बह जाता है
ठीक सीढ़ियों के नीचे गंगा के प्रवाह में।

जहाँ विलीन हो जाते हैं पंचतत्व, किसी अनंत निराकार में।

जहाँ शेष बचती धुँआ ही धुँआ
और प्रकट होता है सिर्फ़ "शाश्वत सत्य"...
#𝓜𝓪𝓷𝓲𝓴𝓪𝓻𝓷𝓲𝓴𝓪#V𝓪𝓻𝓪𝓷𝓪𝓼𝓲🙏🏻🔱

©मलंग #मणिकर्णिका
🌹जहां धूमिल हो जाते सारे

मस्तिष्क - तृष्णा के द्वंद, एक असीम मौन में।

जहाँ देखते देखते क्षण भर में,
दहक उठता हैं देह अनेकों चिताओ में।

जहाँ सारे स्वांग नष्ट हो जाते हैं
भ्रम - अभिमान के, चीर अग्नि में।

जहाँ आँसू सूख कर गिर जाते हैं
अथक सुलगती राख़ में।

जहाँ सबकुछ बह जाता है
ठीक सीढ़ियों के नीचे गंगा के प्रवाह में।

जहाँ विलीन हो जाते हैं पंचतत्व, किसी अनंत निराकार में।

जहाँ शेष बचती धुँआ ही धुँआ
और प्रकट होता है सिर्फ़ "शाश्वत सत्य"...
#𝓜𝓪𝓷𝓲𝓴𝓪𝓻𝓷𝓲𝓴𝓪#V𝓪𝓻𝓪𝓷𝓪𝓼𝓲🙏🏻🔱

©मलंग #मणिकर्णिका