था द्वार जब तक, जीवन की कंदराओं का, घोर तिमिर में, भटका था मन बिन पतवार की नौकाओं सा... फिर स्वासों की निरंतरता ने स्व में जा समाधिस्थ किया हृदय वाहिनी से छन कर तब आलोक बोध, का प्रगट हुआ । तलाश तो बहुत किया मगर मिला नहीं हमें। #मिलानहीं #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi #हिंदी_कविता #आद्यातमिक #विष्णुप्रिया #आत्मबोध