Nojoto: Largest Storytelling Platform

किसी की आंखों में खून का सैलाब देखा है|

किसी की आंखों में खून का सैलाब देखा है|                                       जिस्म पड़ा है रू को तड़पते बेहाल देखा है                                        किसी की आंखों में|                                                                       ला से बुला रही हैं अपनों को आवाज देकर|                                          हर शख्स रो रहा है मौत के मंजर देख कर|                                        किसी की आंखों में|                                                                   अपनों के होते हुए लावारिस  हो  गए   हम|                                    घर था अपना फिर भी  बेघर हो गए हम                                          किसी की आंखों में|                                                                   जख्म जिसने दिए वही मरहम बांटते यारा|                                          जो मेरे नहीं हुए वह तेरे क्या होंगे   दोबारा|                                       किसी की आंखों में|                                                                      उन्हें फुर्सत नहीं  रेली और विदेश   जाने   से|                                      यहां देश मर रहा है दाने दाने से और खाने से|                                    किसी की आंख में|                                                                        यह लगे हैं जोशी कुर्सियां बचाने में और मैं खाने  में|                              देश जूझ रहा यहां जान बचाने में मुर्दों को जलाने में|                                                            किसी की आंख में|6

©joshi joshi diljala Kursi bachane mein
किसी की आंखों में खून का सैलाब देखा है|                                       जिस्म पड़ा है रू को तड़पते बेहाल देखा है                                        किसी की आंखों में|                                                                       ला से बुला रही हैं अपनों को आवाज देकर|                                          हर शख्स रो रहा है मौत के मंजर देख कर|                                        किसी की आंखों में|                                                                   अपनों के होते हुए लावारिस  हो  गए   हम|                                    घर था अपना फिर भी  बेघर हो गए हम                                          किसी की आंखों में|                                                                   जख्म जिसने दिए वही मरहम बांटते यारा|                                          जो मेरे नहीं हुए वह तेरे क्या होंगे   दोबारा|                                       किसी की आंखों में|                                                                      उन्हें फुर्सत नहीं  रेली और विदेश   जाने   से|                                      यहां देश मर रहा है दाने दाने से और खाने से|                                    किसी की आंख में|                                                                        यह लगे हैं जोशी कुर्सियां बचाने में और मैं खाने  में|                              देश जूझ रहा यहां जान बचाने में मुर्दों को जलाने में|                                                            किसी की आंख में|6

©joshi joshi diljala Kursi bachane mein