प्रकृति रो-रो कर गाती है..... कभी घनघोर घटा छा जाती है, कभी मंद पवन लहराती है! ये चक्र चल रहा कैसा है, प्रकृति रो-रो कर गाती है! नियम बंध सब टूट गये, भंवरे कलियों से रुठ गये, पुष्पित तो है कुसमित सुमन, पर खुशबू लाना भूल गये, घर छोड़ घरों को आती है, कुंभलाती है, धुंधलाती है, अश्रु से नीरित करके भी, प्रकृति रो-रो कर गाती है! क्या यही समय है अंत काल का, कलियुग के कलि,कृष्ण लाल का, महा प्रलय के करूण रुदन का, मानव का नत हो कुष्ठ कर्म,का बर्खा बरस-बरस इतराती है, मगन, गगन पर इठलाती है, ध्वनि चहु दिशाओं से आती है, प्रकृति रो-रो कर गाती है ! #निधि #sunrays