चलिए कुछ लिखते हैं,
जज़्बात भी यहां कागज़ों पर बिकते हैं,
चलिए कुछ लिखते हैं,
यूं तो कागज़ पर भी ज़ख्मों के निशां दिखते हैं,
स्याही के अहसासों में डूब के शब्दों को पकड़ते हैं,
इक नया जख्म मिला है उसे भरते हैं,
चलिए छोड़िए आज कलम को आराम देंते हैं।। #Poetry