मर्ज हो या न हो चारसाज तुम्हीं बनना मेरे जिंदगी के सफर का हमराज़ तुम्हीं बनना सुना है इस मर्ज की कोई दवा ही नहीं बनी जो सुकूँ पहुँचा सके वो इलाज तुम बनना मुन्तशिर हो भी गया इस जंग में लड़ते लड़ते तो तेरी बाहों में यारा मैं खुद को फिर संवार लूंगा। घूंट कितनी भी कड़वी क्यों न हो दवाये मर्ज की जाना सिर्फ तेरे लिए मैं हलक से उसे उतार लूंगा। ©अलका मिश्रा ©alka mishra #मर्ज़