दर्पण दर्पण चेहरें नहीं दिखाता है, वो फितरत भी नही बताता है, वो तो बस हकीकत जानकर, खामोशियों में चला जाता है। मानव नकाब ओढ़े रहता है, वो, वो नही है जो कहता है, दर्पण के आगे हंसकर हमेशा; झूठ से भरा जीवन जीता है। मानव कुबुद्धि जीव बड़ा जटिल है, दर्पण सत्यता दर्शाता अटल है, धोखे के इस द्वंद में मानव जीव, दर्पण के आगे हरदम विफल है। फरेबी नजरे नही दिखाता है, दर्पण राज़ भी नही सुनाता है, वो तो बस सब इरादे परख कर, खामोशियों में मुस्कुराता है। कवि आनंद दाधीच, भारत ©Anand Dadhich #darpan #Mirror #kaviananddadhich #poetananddadhich #hindipoetry #kavitayen #WoNazar