Nojoto: Largest Storytelling Platform

मिलने की तड़प भी है ,और बिछड़ने का ग़म भी, अनमने से

 मिलने की तड़प भी है ,और बिछड़ने का ग़म भी,
अनमने से  तुम  भी हो ,और बेचैन से  हैं हम भी,

सहते  रहे खामोशी से ,हम  सितम इस ज़माने के,
बहाने भी  सौ  ढूँढा  किये  हम , रिश्ते  निभाने के,

सोचा था दिन गुज़ार देंगें ,हम  एक दूजे के सहारे,
रह गए  बनकर  हम , फ़क़त  नदी  के दो किनारे,

कभी महफिलों  से  गुलज़ार था ,आशियाँ हमारा,
भरी भीड़ में भी हमको तो,मेरी तन्हाइयों ने मारा,

बढ़ना चाहा  हमने  कई  बार ,मैं  से हम की ओर,
ज़िन्दगी हाथ से फिसल गई, हाथ  आया  न छोर।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
  #दोकिनारे