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ग़ज़ल ज़िन्दगी मौत में भी जंग ये जारी क्यू

ग़ज़ल

ज़िन्दगी   मौत  में   भी  जंग   ये  जारी  क्यूँ  है।
मेरे  अपनों  की   रकीबों  से   ही  यारी  क्यूँ  है।

तुम  तो    कहते   रहे   के    साथ    रहेंगे    मेरे,
उम्र   तन्हा   ही   यहाँ   तुमने   गुजारी   क्यूँ  है।

तुमने  इक  बार  छुआ  था  मुझे  जो  नज़रों से,
मुद्दतों   बाद   भी   छाई   ये   ख़ुमारी   क्यूँ   है।

कैसे   महफूज़   रहें    परियाँ   तेरी   दुनिया  में,
ज़र्रे - ज़र्रे   पे    यहाँ   बैठा   शिकारी   क्यूँ   है।

दिल के सौदे में तो हम दोनों ही शामिल थे मगर,
फिर  ये  गलती  ऐ  हसीं  सिर्फ  हमारी  क्यूँ  है।

कर  दिया ख़ुद  को भी  क़ुर्बान  तेरी उलफ़त में,
बाज़ी फिर  दिल  की  यहाँ  मैंने  ही हारी  क्यूँ है।

बेख़ुदी  कह  दे इसे  या तू  कोई 'रण' का  वहम,
आइने   में   भी   ये   तस्वीर   तुम्हारी   क्यूँ   है।

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)
ग़ज़ल

ज़िन्दगी   मौत  में   भी  जंग   ये  जारी  क्यूँ  है।
मेरे  अपनों  की   रकीबों  से   ही  यारी  क्यूँ  है।

तुम  तो    कहते   रहे   के    साथ    रहेंगे    मेरे,
उम्र   तन्हा   ही   यहाँ   तुमने   गुजारी   क्यूँ  है।

तुमने  इक  बार  छुआ  था  मुझे  जो  नज़रों से,
मुद्दतों   बाद   भी   छाई   ये   ख़ुमारी   क्यूँ   है।

कैसे   महफूज़   रहें    परियाँ   तेरी   दुनिया  में,
ज़र्रे - ज़र्रे   पे    यहाँ   बैठा   शिकारी   क्यूँ   है।

दिल के सौदे में तो हम दोनों ही शामिल थे मगर,
फिर  ये  गलती  ऐ  हसीं  सिर्फ  हमारी  क्यूँ  है।

कर  दिया ख़ुद  को भी  क़ुर्बान  तेरी उलफ़त में,
बाज़ी फिर  दिल  की  यहाँ  मैंने  ही हारी  क्यूँ है।

बेख़ुदी  कह  दे इसे  या तू  कोई 'रण' का  वहम,
आइने   में   भी   ये   तस्वीर   तुम्हारी   क्यूँ   है।

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)
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