टकटकी लगाए किवाड़ की चिटखनी पर हर आहट से तरंगित होता मन असमंजस में बस तुम्हें ही तो सोच पाता है। खिड़कियों से हवाएं कुछ झोंके जबरन उधार देती हैं जिनमें बारी बारी से तुम्हारे नाम पते लिखकर बड़े मन से लौटाये हैं। शायद देर से ही सही तुम तक वो पहुंच जाएँ मेरी अन्यमनस्कता तुम्हें समझाएं और मुझ पर तुम्हारा विश्वास कुछ और प्रगाढ़ हो जाए तुम्हें लौटने की विवशता अतिरेकता की सीमाएं लांघ जाएं इन दरवाजों पर तुम्हारे हाथों की दस्तक मेरी टकटकी का क्रम तोड़ कर रख दे। प्रीति #किवाड़#प्रतीक्षा Yqdidi