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White पाया है मानव जन्म, ध्येय पहचानो। करना है प

White 
 पाया है मानव जन्म, ध्येय पहचानो।
करना है प्रभु को याद, सार यह  जानो।।
 हो अतिथि रहे दिन चार, बात मत भूलो ।
करते रहिए शुभ कार्य, पुण्य फल छू लो।।1।।

तुम करना सेवा राष्ट्र, धेनु माॅं गंगा।
है यही तुम्हारा धर्म, रहे मन चंगा।।
शुभता उर में रख तात, मातु हित करना।
 जीवन में हो आनन्द, स्वाद फिर चखना।।2।।

धारण करिए निज धर्म ,सत्य यह जानो।
 करता रक्षित है धर्म,मर्म यह मानो।।
निज मन- वाणी- कर्म,पीर मत देना।
प्राणि-मात्र के सब व्याधि, कष्ट हर लेना।।3।।

तब कृपा करें श्री नाथ,सत्य यह गाथा।
अपनाओ जीवन सार, झुका कर माथा।।
जो अपने ही हैं कर्म, भोगना पड़ता।
पाकर ज्ञानी से ज्ञान,कहो क्यों अड़ता।।4।।

मोहक -मायामय जग मिथ्या, सन्त जन कहते।
 जो चले राह विपरीत, सकल दुख सहते।।
जग सुन्दर रुचिर वितान,रचे यह माया।
जब आधि-व्याधि तब साथ, नहीं निज साया।।5।।

जग में देते तब साथ, कर्म जो अपने।
शुभ -अशुभ सभी हैं भुक्त,शेष सब सपने।।
सन्त सयाने सच बात, यही बतलाते।
जग में जीवन का मर्म, सदा सिखलाते।।6।।

जपिए हरि सुन्दर नाम, सदा मधु घोलें।
हिय अंतस जगे उमंग,पाप सब धो लें।।
प्रभु करते हैं नित दूर, भक्त-जन बाधा।
उर आनिए निज तोष,सोच क्यों आधा।।7।।

©CHOUDHARY HARDIN KUKNA #मानवता  भक्ति भजन भक्ति सागर
White 
 पाया है मानव जन्म, ध्येय पहचानो।
करना है प्रभु को याद, सार यह  जानो।।
 हो अतिथि रहे दिन चार, बात मत भूलो ।
करते रहिए शुभ कार्य, पुण्य फल छू लो।।1।।

तुम करना सेवा राष्ट्र, धेनु माॅं गंगा।
है यही तुम्हारा धर्म, रहे मन चंगा।।
शुभता उर में रख तात, मातु हित करना।
 जीवन में हो आनन्द, स्वाद फिर चखना।।2।।

धारण करिए निज धर्म ,सत्य यह जानो।
 करता रक्षित है धर्म,मर्म यह मानो।।
निज मन- वाणी- कर्म,पीर मत देना।
प्राणि-मात्र के सब व्याधि, कष्ट हर लेना।।3।।

तब कृपा करें श्री नाथ,सत्य यह गाथा।
अपनाओ जीवन सार, झुका कर माथा।।
जो अपने ही हैं कर्म, भोगना पड़ता।
पाकर ज्ञानी से ज्ञान,कहो क्यों अड़ता।।4।।

मोहक -मायामय जग मिथ्या, सन्त जन कहते।
 जो चले राह विपरीत, सकल दुख सहते।।
जग सुन्दर रुचिर वितान,रचे यह माया।
जब आधि-व्याधि तब साथ, नहीं निज साया।।5।।

जग में देते तब साथ, कर्म जो अपने।
शुभ -अशुभ सभी हैं भुक्त,शेष सब सपने।।
सन्त सयाने सच बात, यही बतलाते।
जग में जीवन का मर्म, सदा सिखलाते।।6।।

जपिए हरि सुन्दर नाम, सदा मधु घोलें।
हिय अंतस जगे उमंग,पाप सब धो लें।।
प्रभु करते हैं नित दूर, भक्त-जन बाधा।
उर आनिए निज तोष,सोच क्यों आधा।।7।।

©CHOUDHARY HARDIN KUKNA #मानवता  भक्ति भजन भक्ति सागर