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ये बारिश कितनी अच्छी है। अपना ये धरम निभाती है ऊं

ये बारिश कितनी अच्छी है।
अपना ये धरम निभाती है 
ऊंच नीच का भेद नहीं 
सभी को साथ भिगाती है 
आसमान से आकर के 
धरती की प्यास बुझाती है 
तब, धूप से जली हुई मिट्टी भी 
सोंधी सुगंध फैलती है
चाहे, राजा हो या रंक यहाँ 
सभी को ये हर्षाती है 
सूखे विरान पड़े खेतों को 
हरा भरा कर जाती है 
ताल तलइया नदी नालियाँ 
लबा- लब्ब भर जाती है
जाते जाते भी वो हमको 
इन्द्र धनुष दिखलाती है 
ये बारीश कितनी अच्छी है ... 

-Santosh Vishwakarma

©Santosh Vishwakarma 
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