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------------------------- छाई है काली घटा, पुरवा प

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छाई है काली घटा, पुरवा पवन झकोर ।
पपिहा पियु पियु रट रहा,
नाच रहा है मोर ।।

वसुन्धरा  पहने हुये, धानी रंग का चीर ।
वर्षाऋतु आनंद रत, दादुर,
बगुला कीर ।।

हौले हौले भर रहे, सरि-सरवर के पाट ।
नयन बरसते प्रिया के,लख
प्रियतम की बाट ।।

सावन की है झर लगी,
पुलकित तरुवर गात।
जलधर तन मन सींचता,
धरती की क्या बात !!

©कमलेश मिश्र
  सावन की घटा

सावन की घटा #कविता

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