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"गुरु" वो आकाश से ऊंचा समुद्र से भी गहरा शाश्वत ज

"गुरु"

वो आकाश से ऊंचा
समुद्र से भी गहरा
शाश्वत ज्ञान की अविरल धारा
देता नित नवांकुर मनुज को।
पाता शीतल पीयूष बोध वो
होता विकास बढ़ते जाते सोपान वो।
धन्य भारत-भूमि ऋषि-मुनि के गुरुकुल,
अब नही विरले मिलते गुरुवर।
इतिहास से सीखते लेकिन अमल नही,
भविष्य जान करते अपना विनाश।
आह! अबोध होकर नर-जन फिर,
गुरु प्रकाश पुंज को तरसे हरमन।
हे देव! मनुज को क्या बतलाये,
शिक्षा के सूरज से दमकाये।।

©Sunil lambadi गुरु से ही ज्ञान .......
"गुरु"

वो आकाश से ऊंचा
समुद्र से भी गहरा
शाश्वत ज्ञान की अविरल धारा
देता नित नवांकुर मनुज को।
पाता शीतल पीयूष बोध वो
होता विकास बढ़ते जाते सोपान वो।
धन्य भारत-भूमि ऋषि-मुनि के गुरुकुल,
अब नही विरले मिलते गुरुवर।
इतिहास से सीखते लेकिन अमल नही,
भविष्य जान करते अपना विनाश।
आह! अबोध होकर नर-जन फिर,
गुरु प्रकाश पुंज को तरसे हरमन।
हे देव! मनुज को क्या बतलाये,
शिक्षा के सूरज से दमकाये।।

©Sunil lambadi गुरु से ही ज्ञान .......