"गुरु" वो आकाश से ऊंचा समुद्र से भी गहरा शाश्वत ज्ञान की अविरल धारा देता नित नवांकुर मनुज को। पाता शीतल पीयूष बोध वो होता विकास बढ़ते जाते सोपान वो। धन्य भारत-भूमि ऋषि-मुनि के गुरुकुल, अब नही विरले मिलते गुरुवर। इतिहास से सीखते लेकिन अमल नही, भविष्य जान करते अपना विनाश। आह! अबोध होकर नर-जन फिर, गुरु प्रकाश पुंज को तरसे हरमन। हे देव! मनुज को क्या बतलाये, शिक्षा के सूरज से दमकाये।। ©Sunil lambadi गुरु से ही ज्ञान .......