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शब-ए-दीदार का सवेरा नहीं है, ज़रा शाम ढली है महज़,

शब-ए-दीदार का सवेरा नहीं है,
ज़रा शाम ढली है महज़,
अभी अंधेरा नहीं है।
लौट आ अपने अशियाने में, 
उन स्याह गलियों से, ऐ दिल
सब गैर के हो गए,
वहाँ अब कोई तेरा नहीं है।

-रूद्र प्रताप सिंह

(Plz Refer To Caption For Meaning) शब-ए-दीदार*: दीदार की रात
स्याह*: अंधेरा
शब-ए-दीदार का सवेरा नहीं है,
ज़रा शाम ढली है महज़,
अभी अंधेरा नहीं है।
लौट आ अपने अशियाने में, 
उन स्याह गलियों से, ऐ दिल
सब गैर के हो गए,
वहाँ अब कोई तेरा नहीं है।

-रूद्र प्रताप सिंह

(Plz Refer To Caption For Meaning) शब-ए-दीदार*: दीदार की रात
स्याह*: अंधेरा

शब-ए-दीदार*: दीदार की रात स्याह*: अंधेरा #शायरी