सखी हमसे आंखें फेरने वाले भी जार जार रोए मासूम सी ख्वाहिश का कत्ल कर हम बार बार रोए ख्वाबों को खोने का खौफ दिन रात सताता रहा शौक भी अक्सर नगीना बन मन को नचाता रहा गैरत की गांठ बांध कर पतंग उड़ाने की फिराक में है कई तमाशाई शिद्दत से तबाही मचाने की आस में है जानती हूं बेवजह ही खींचातान का शिकार हुई हूं मुद्दे की बात यह है ताज हूं मैं सखी हार नहीं हूं बबली गुर्जर ©Babli Gurjar ताज