(साथ-साथ चले थे) वो चांदनी रात,और फैली हरियाली, ठंढी हवाओं के साथ,टिमटिमाते तारे, वो खिले हुए फूल,जंहा हम बैठे थे, सांसो की गर्मी से बन गए थे अंगारे। बांहों में बांहे थी, नजरो में प्यार था, हम मुहब्बत की गहराइयों में डूबे थे, हमारी अदाओं से,उनिंद लताओं से, कुछ कांटे मौसम को भी चुभे थे। वो पलके झुकाए,दांतो में दामन दबाए मेरे सीने पे सर रख सोई थी, मेरे पास होकर भी कुछ सपने बुनने में खोई थी, कभी तिनके उठा उसे तोड़ती थी, कभी कोई रेखा खींच उसे जोड़ती थी, अपने आप से थककर, कभी जम्हाई लेती थी कभी उंगलियों को चटका अंगराई लेती थी। उस रात उसकी हर अदा अनोखी थी, भ्रम के साथ,जीवन अनदेखी थी आखिर एक झोंका आया हवाओ का कजरी आंखे, मिटककर खुल गई, वो सहम कर बांहों में सिमट गई, शायद वो हमारे मिलान की आखिरी रात थी, नए सूरज के साथ,आने वाली कोई नई बात थी। हम बिछड़े और दूर दूर हैं पर साथ वो याद वो बात है कपोलो पे पड़ा चुम्बन सौगात है अब याद कर उन सदाओं को उठे कसक को दफना देते है पर आज भी याद है वो जगह जंहा हम मिले गले थे कदम दो कदम ही सही पर हम साथ साथ चले थे।।। दिलीप कुमार खाँ "अनपढ़" #मुहब्बत #प्रेम #प्यार #इश्क़ #यादें #अनपढ़ #Stars&Me