कहावत है कि सावन के अंधे को हर तरफ हरा ही हरा नजर आता है अगर इंसान स्वयं सुखी होता है तो उसे हर इंसान सुखी नजर आता है और यदि वह स्वयं दु:खी होता है तो सारी दुनिया दु:खी नजर आती है। परंतु वहीं पर जब उससे कोई सुखी दिखता है तो उसे दु:ख होता है और जब कोई दु:खी दिखता है तो उसे सुख मिलता है। यह संसार माया मोह से परिपूर्ण है हर व्यक्ति को माया से मोह होता है जब व्यक्ति की अपनी इच्छाएं पूर्ण होती हैं तो वह आत्म संतुष्टि का अनुभव करता है परंतु यदि कोई भी इच्छा अपूर्ण रह जाती है तो वह दु:खी हो जाता है फिर उसे सारे संसार के सुख व्यर्थ लगते हैं और संसार के लोग स्वयं से ज्यादा सुखी नजर आने लगते हैं फिर वह व्यक्ति चाहे धन संपदा से चाहे अन्य संसाधनों से भले ही परिपूर्ण हो परंतु उसे अपना दु:ख ही सबसे बड़ा दु:ख लगता है दूसरों के दु:ख को वह अपने दु:ख से छोटा ही समझता है इसीलिए कहा जाता है कि इंसान स्वभाव से स्वार्थी होता है अपने सुख में सुखी और अपने ही दु:ख में दु:खी होता है। इंसानी स्वभाव है कि वो पहले सिर्फ अपने ही बारे में सोचता है फिर दूसरों की फिक्र करता है दूसरों का भला वो तभी तक करता है जब तक उसका अपना कोई नुकसान ना हो परंतु यदि उसका कोई नुकसान होने की संभावना होती है तो वह पीछे हट जाता है और यदि दूसरा इंसान अपने दु:ख को छुपा कर हमेशा खुश दिखाने की कोशिश करता है तो भी हर इंसान को यही लगता है कि वह सबसे ज्यादा सुखी इंसान है और अन्य अंदर ही अंदर उससे ईर्ष्या की भावना रखते हैं और उसको सुखी देख कर दु:खी होते हैं और यदि स्वयं सुखी होते हैं तो उनको हर तरफ सुख ही सुख नजर आता है। मेरे अनुसार जब इंसान स्वयं चाहता है तभी वह सुखी होता है जब स्वयं चाहता है तभी वह दु:खी हो सकता है जब तक वह स्वयं ना चाहे वह किसी के सुख में दु:खी और किसी के दु:ख में सुखी नहीं हो सकता है यह उसके स्वयं के स्वभाव पर निर्भर करता है कि वह दूसरों के सुख में सुखी होता है या दु:खी।