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मैं एक गुरेज़ाँ लम्हा हूँ अय्याम के अफ़्सूँ-खा़ने

मैं एक गुरेज़ाँ लम्हा हूँ
अय्याम के अफ़्सूँ-खा़ने में
मैं एक तड़पता क़तरा हूँ
मसरूफ़े-सफ़र  जो रहता है
माज़ी की सुराही के दिल से
मुस्तक़बिल के पैमाने में
मैं सोता हूँ और जागता हूँ
और जाग के फिर सो जाता हूँ

मैं एक गुरेज़ाँ लम्हा हूँ अय्याम के अफ़्सूँ-खा़ने में मैं एक तड़पता क़तरा हूँ मसरूफ़े-सफ़र जो रहता है माज़ी की सुराही के दिल से मुस्तक़बिल के पैमाने में मैं सोता हूँ और जागता हूँ और जाग के फिर सो जाता हूँ #poem

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