एकाग्रता मालूम ही प्रयासों से संभव नहीं हो पाती बल्कि यह भी तब विकसित होती है जब किसी कार्य को बौद्ध पूर्ण ढंग से किया जाता है तथा उसके पूर्ण होने पर आनंद ही प्रबल अनुभूति होने लगती है कार्य की संपदा में अनुभव हो रही है आनंद की सुख होती है वास्तव में ऐसी शक्ति है जो व्यक्ति को उसके आंतरिक शक्ति से जोड़ती है इस कारण में कार्य किया जा रहा होता है तब उसमें स्वयं का आनंद ले आने लगता है लोगों को अपने बचपन के दिन अवश्य यादव होंगे एक बच्चा केवल आनंद से सराबोर रहता है तब वह अनावश्यक रूप से दौड़ते हुए एक दिल्ली को पकड़ने का प्रयास करता है जब तक वह और सब कुछ भूल जाता है उसका सारा ध्यान तितली पकड़ने में लगा रहता है ऐसी स्थिति में यह बच्चा एक ग्रह भाव में जाकर अपने कार्य को संपन्न करता है एक ग्रह का तात्पर्य नहीं है कि हम चुपचाप खाली बैठ जाएं और अपने आपको विचारों से मुक्त कर ले यह कुछ ना कुछ करें एक ताकतवर होकर कार्य को संपन्न करने से है जो उस कार्य के प्रति रुचि का उत्पन्न करता है जब कार्य के प्रति रुचि उत्पन्न होती है ऐसे कार्य संपन्न हो जाते हैं बल्कि उस में संपन्न होने के उपरांत दोनों ही स्थितियों में अभूतपूर्व आनंद की अनुभूति होती रहती है ©Ek villain #एकाग्रता मनुष्य जीवन में #Travel