वक्त वक्त का गुलाम है ये आदमी वक्त का नवाब भी है आदमी आदमी ही सत्य को पहचानता आदमी ही धर्म को है मानता जानता है राम को ये आदमी वक्त का गुलाम है ये आदमी आदमी ही झूठ को तराशता आदमी ही सत्य को नकारता स्वीकारता है 'काम' को ये आदमी वक्त का गुलाम है ये आदमी आदमी ही आदमी को मारता आदमी ही जिंदगी सँवारता वीरता का नाम भी है आदमी वक्त का गुलाम है ये आदमी आदमी ही आईना समाज का वो रक्षक है नारी की लाज का यहाँ भी बदनाम है ये आदमी वक्त का गुलाम है ये आदमी आदमी ही कायरता का रूप है आदमी ही मौत का स्वरूप है रूप है भगवान का ये आदमी वक्त का गुलाम है ये आदमी वक्त का नवाब भी है आदमी रचियता - आनन्द कुमार आशोधिया©2020 #वक्त #कविता