221 212 2 221 2122 महबूब आँखों में रहना प्यार प्यार बनके नूर -ए- निगार सांसो के तार तार बनके दस्तूर इस ज़माने का ख़ूब - रू मुहब्बत आओं ख्यालों की जन्नत हूर हूर बनके मामूल जिंदगी से हर वक्त इल्तिजा से बाग़-ए-अदन बनाओगे दार दार बनके रस्म-ए-वफ़ा निभाएगें जाने जाना तुमसे दो लफ़्ज़ की कहानी को मीर मीर बनके गुलज़ार कर दिया है ख़ुशबू से आशियाँना फूलो से महक़ाओ अपने नूर नूर बनके मंसूब बन गए हैं जब से "ज़ुबैर " मेरे यादो में रहते में अक्सर गीर गीर बनके लेखक - ज़ुबैर खान.......✍️ ©SZUBAIR KHAN KHAN Aankho Main