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गूंज रही थी चार दिवारी, तब इंक़लाब के नारों से, सहम

गूंज रही थी चार दिवारी, तब इंक़लाब के नारों से,
सहम उठा जब पूरा भारत, डायर के अत्याचारों से।

क्या बूढ़े, क्या बच्चे भोले, क्या महिलाएं दीवानी थी,
जब जलियवाला में लिखी, खूनी कलम ने कहानी थी।

#13अप्रैल
#जलियावाला_बाग

©anurag bauddh #इंकलाब 

#कविता#शायरी
गूंज रही थी चार दिवारी, तब इंक़लाब के नारों से,
सहम उठा जब पूरा भारत, डायर के अत्याचारों से।

क्या बूढ़े, क्या बच्चे भोले, क्या महिलाएं दीवानी थी,
जब जलियवाला में लिखी, खूनी कलम ने कहानी थी।

#13अप्रैल
#जलियावाला_बाग

©anurag bauddh #इंकलाब 

#कविता#शायरी