~आख़री उम्मीद~ एक आख़री उम्मीद लाए हैं तुमसे मिलने के कई बहाने हैं तुम न मिलो गुलशन में बोहोत मांगने पर तुमसे मिले हैं। एक आख़री उम्मीद लाए हैं जिने के ढेर सलिखे हैं जीना किस्को सब मौत के फ़रमाने हैं इन दिनों तनहाई ने खुब घिसपीटाए हैं। एक आख़री उम्मीद लाए हैं तुम्हारी अश्कों में खोखले बनें हैं टूटे शिशों में तुम्हें ढुंढने लगे हैं। एक आख़री उम्मीद लाए हैं रब सलामत की आस लाए हैं साथ बिते बातों पर हंस देते हैं आजकल क्या कहें लोग हमें पागल समझने लगे हैं। ©Payal Pathak #लवताज़_ #lovetaj