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मापनी - १२२-१२२-१२२-१२२ दरख़्तों के साये में क

मापनी - १२२-१२२-१२२-१२२

दरख़्तों  के  साये  में  कब  तक  रहेगा
मुसाफ़िर है इक दिन तो चलना  पड़ेगा।।१

जला दी अमीरों  ने  बस्ती  ये  कहकर
यहां  इक  नया  शहर  फिर  से  बसेगा।।२

जिसे कर दिया हो यूँ  अपनों  ने  बेघर 
वो फ़िर किसको दुनिया में अपना कहेगा।।३

लगा लेगा जख़्मों प मरहम तू  बेशक़
मगर दिल के जख़्मों  को  कैसे  भरेगा।।४

कहीं पर  तो  होगा  ठिकाना  तुम्हारा
करूँगा मैं  कोशिश  कभी  तो  मिलेगा।।५

तखय्युल की दुनिया से बाहर निकल 'जय'
हकीकत की दुनिया से कब तक बचेगा।।६

©jai_writes_ पढिये एक और मुकम्मल ग़ज़ल

#ग़ज़ल 
#दरख़्त 
#शायरी 
#लफ्ज़ 
#मां 
#yqbaba
मापनी - १२२-१२२-१२२-१२२

दरख़्तों  के  साये  में  कब  तक  रहेगा
मुसाफ़िर है इक दिन तो चलना  पड़ेगा।।१

जला दी अमीरों  ने  बस्ती  ये  कहकर
यहां  इक  नया  शहर  फिर  से  बसेगा।।२

जिसे कर दिया हो यूँ  अपनों  ने  बेघर 
वो फ़िर किसको दुनिया में अपना कहेगा।।३

लगा लेगा जख़्मों प मरहम तू  बेशक़
मगर दिल के जख़्मों  को  कैसे  भरेगा।।४

कहीं पर  तो  होगा  ठिकाना  तुम्हारा
करूँगा मैं  कोशिश  कभी  तो  मिलेगा।।५

तखय्युल की दुनिया से बाहर निकल 'जय'
हकीकत की दुनिया से कब तक बचेगा।।६

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jaigupta4833

Jai Gupta

New Creator

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