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*दर्द कागज़ पर,* *मेरा बिकता रहा,* *मैं बैचैन था,*

*दर्द कागज़ पर,* 
*मेरा बिकता रहा,*
*मैं बैचैन था,* 
*रातभर लिखता रहा..*
*छू रहे थे सब,*
*बुलंदियाँ आसमान की,*
*मैं सितारों के बीच,*
*चाँद की तरह छिपता रहा..*
*अकड होती तो,* 
*कब का टूट गया होता,*
*मैं था नाज़ुक डाली,* 
*जो सबके आगे झुकता रहा..*
*बदले यहाँ लोगों ने,*
*रंग अपने-अपने ढंग से,*
*रंग मेरा भी निखरा पर,*
*मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा..*
*जिनको जल्दी थी,*
*वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*
*मैं समन्दर से राज,*
*गहराई से सीखता रहा..!!*
*"ज़िन्दगी कभी भी ले सकती है करवट...*
*तू गुमान न कर...*
*बुलंदियाँ छू हज़ार, मगर...*
*उसके लिए कोई 'गुनाह' न कर.*
*कुछ बेतुके झगड़े*, 
*कुछ इस तरह खत्म कर दिए मैंने*
*जहाँ गलती नही भी थी मेरी*, 
*फिर भी हाथ जोड़ दिए मैंने*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
*दर्द कागज़ पर,* 
*मेरा बिकता रहा,*
*मैं बैचैन था,* 
*रातभर लिखता रहा..*
*छू रहे थे सब,*
*बुलंदियाँ आसमान की,*
*मैं सितारों के बीच,*
*चाँद की तरह छिपता रहा..*
*अकड होती तो,* 
*कब का टूट गया होता,*
*मैं था नाज़ुक डाली,* 
*जो सबके आगे झुकता रहा..*
*बदले यहाँ लोगों ने,*
*रंग अपने-अपने ढंग से,*
*रंग मेरा भी निखरा पर,*
*मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा..*
*जिनको जल्दी थी,*
*वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*
*मैं समन्दर से राज,*
*गहराई से सीखता रहा..!!*
*"ज़िन्दगी कभी भी ले सकती है करवट...*
*तू गुमान न कर...*
*बुलंदियाँ छू हज़ार, मगर...*
*उसके लिए कोई 'गुनाह' न कर.*
*कुछ बेतुके झगड़े*, 
*कुछ इस तरह खत्म कर दिए मैंने*
*जहाँ गलती नही भी थी मेरी*, 
*फिर भी हाथ जोड़ दिए मैंने*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏